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The plunder of hard work isn’t the most dangerous
The batons of the police aren’t the most dangerous
The fist greed isn’t the most dangerous
To be caught unaware and
be shackled by fearful silence, though terrible
Still it isn’t the most dangerous
To be silenced amidst deceit’s uproar
To read by a firefly’s light , though painful
To just clench fists and wait out time—though it’s painful
Yet this isn’t the most dangerous.
The most dangerous is to be filled with dead calm
To be drained of all yearning
To leave home for work
And return from work to home
The most dangerous is that hour
Which ticks on your wrist
Yet remains frozen in your gaze
The most dangerous is that eye
Which is frozen like ice
Whose vision forgets to embrace the world with love
Which grows fogged by the vapors of darkness rising from things
Which, drinking the daily routine
Is lost in its directionless repetition.
The most dangerous is that moon
Which, after every murder
Rises over deserted courtyards
But does not prick your eyes like chili
The most dangerous is that song
Which, trying to reach your ears
Chants only dirges
Which knocks like a thug
On the doors of terrified people
The most dangerous is that night
Which descends on the skies of a living soul
Where only owls screech and jackals howl
Shrouds the doors and windows in eternal darkness
The most dangerous is that
In which the sun of one’s soul sets
And a fragment of its dead light
Pierces into the east of your being
( dead sunlight i.e. hopelessness has taken over the east (from where the sun rises)
- dedicted to a brave fighters of gaza
some imageries seem repeated. Like the moon and the night one. I had a thought that I could merge the sentiment of both in one.
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबससे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना—बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना—बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना—बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना—बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक़्त निकाल लेना—बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वह घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी निगाह में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वह आँख होती है
जो सबकुछ देखती हुई भी जमी बर्फ़ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अँधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वह चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है
पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है
सबसे ख़तरनाक वह गीत होता है
आपके कानों तक पहुँचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
जो गुंडे की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वह रात होती है
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआं-हुआं करते गीदड़
हमेशा के अँधेरे बंद दरवाज़ों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं
सबसे ख़तरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती।